Friday, January 10, 2014

बुलबुल

इक लड़की को देखा, शरमाई सी हुई,
गिनती रहती है तार्रों को,
कभी खुद में गुम, कभी कर दे गुम,
चेहरा उसका और करे बयां सितारों को!

कुछ सूझा हमें, की उसे कहें,
फिर लगा कहने को कुछ ना है,
ऐसे ताउमार देखा करेंगे बस,
यही आफ़साना, यही बयां है!

यूँ लटों को फिर सुलझाते हुए,
रोज़ उलझ जाती है कहीं,
हँसते-हँसते गाती है यूँ,
फिर हमें चुरा ले जाती है कहीं!

मधुर-मधुर, कोमल-कोमल,
इक राग सा जैसे बजता है,
लहरों के साजों पर सुर कोई,
उसके होठों से सजता है!

सोचा हमने कुछ कहें लिखें,
फिर ख्याल यूँ हमने जाने ही दिया,
कुछ खो से गये इन् पलों में हम,
उसको देखा, बस देखा किया!

लटों से पानी की बूंदें,
छलक-छलक जातीं ऐसे,
ऒस के मोती शरमा जायें,
और पूछें राज़ गहरे उससे!

सुबहा की तरहा चेहरा ऐसा,
उजला-उजला, चमका-चमका,
शब् में भी यूँ उजाला होता है,
ये क्या मंज़र हमने देखा!

मद्धम-मद्धम ये हंसी उसकी,
दिल की धड़कन यूँ बढाती है,
रोम-रोम यूँ खिलता है,
जैसे सूरज की किरणों से,
चाँदनी छलक कर आती है!

ख़ामोश तन्हाई में भी कभी,
जब याद उसे हम करते हैं,
लगता है हर पल साथ है वो,
कभी कहने को अकेले रहते हैं!

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