फिर से चली है सर्द हवा, फिर धुल उडी है हलकी सी,
यादों के आँगन में फिर से, एक साया सा हमने देखा!
दिल में हुआ है कुछ फिर से, कुछ धुंआ उड़ा है फिर से कहीं,
मैं फिर से बैठा जाता हूँ, ये क्या फिर से हमने देखा!
कुछ स्याही बिखरी कागज़ पर, फिर शब्द से ऐसे बनने लगी,
दिल गीला-गीला फिर से हो उठा, कुछ मंज़र इसने फिर से देखा!
एक फूल जो सूखा-सूखा था, यूँ पतॊ में फिर बिखर गया,
कुछ रंग जो उसका छुटा था, उसे स्याही में हमने देखा!
यूँ जाते हैं पल इक-इक पल, यूँ बनते हैं फिर आज से कल,
जिंदा रहने की प्यास में यूँ, खुद को पल-पल मरते देखा!
देखा है सब कम होते हुए, सबकी आँखें नम होते हुए,
हो प्यार किसी का या ममता हो, सबको मद्धम होते देखा!
वक़्त के परिंदे या रेत् के पल, रुक जाते कभी तो यूँ होता,
कुछ कह सुन लेते तुमसे भी, सबको जाते यूँ ही देखा!!
यादों के आँगन में फिर से, एक साया सा हमने देखा!
दिल में हुआ है कुछ फिर से, कुछ धुंआ उड़ा है फिर से कहीं,
मैं फिर से बैठा जाता हूँ, ये क्या फिर से हमने देखा!
कुछ स्याही बिखरी कागज़ पर, फिर शब्द से ऐसे बनने लगी,
दिल गीला-गीला फिर से हो उठा, कुछ मंज़र इसने फिर से देखा!
एक फूल जो सूखा-सूखा था, यूँ पतॊ में फिर बिखर गया,
कुछ रंग जो उसका छुटा था, उसे स्याही में हमने देखा!
यूँ जाते हैं पल इक-इक पल, यूँ बनते हैं फिर आज से कल,
जिंदा रहने की प्यास में यूँ, खुद को पल-पल मरते देखा!
देखा है सब कम होते हुए, सबकी आँखें नम होते हुए,
हो प्यार किसी का या ममता हो, सबको मद्धम होते देखा!
वक़्त के परिंदे या रेत् के पल, रुक जाते कभी तो यूँ होता,
कुछ कह सुन लेते तुमसे भी, सबको जाते यूँ ही देखा!!
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