Friday, January 10, 2014

एक कविता

कुछ प्यार के पल जो बांटे थे, कुछ फूल भी थे कुछ कांटे थे!

कुछ दर्द था मीठा-मीठा सा, एहसास था धीमा-धीमा सा!

दिल को एक मंज़र याद सा था, एक प्यार भरा जज़्बात सा था!

तब पतझड़ भी एक सावन था, गम भी खुशियों का आँगन था!

झोंके यूँ हवा के चलते थे, पलकों पे सपने खिलते थे!

सपनो की शाखों पर पंछी, उन्मुक्त प्रेम छंद लिखते थे!

वक़्त गया यादें आयीं, दिल का जो हिस्सा सोया था,

जो अब तक यूँ ही खोया था, उसमें कुछ सामान थी लायी!

फिर पतझड़ पतझड़ लगने लगा,

फिर पंछी के गीत खत्म हुए,

फिर लगने लगा मैं जिंदा हूँ,

फिर सपने मेरे सोने चले!!

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