Tuesday, June 24, 2014

जाने दे...

शोखियों को अपने दामन से निकल जाने दे!
अब सुबा होने दे और जाग जाने दे!!

नहीं रहा मैं कहीं का तेरे बग़ैर ए हमदम!
कम-स-कम मुझे सब्र से तो बह जाने दे!!

सब डूबा दिया तेरी सरगोशियों के साए में!
अब तो खुद साया ब कहता है, तुझे कैसे उभर जाने दें!!

मदहोश, खुशनुमा, गमगीन, बेताब, ये सभी समा थे जब तू था यहाँ!
अब तो नाशुक्र है ये हवा भी, कहती है, बस जाने दे!!

सिसकता है वो पेड़ भी, जो बिठाता था तुझे तले!
छाँव तो देता है पर, सोचता है क्या वो ज़माने थे!!

हर एक पल का एहसास और उसका जीना, ये था तेरे बगैर भी!
बस तेरे आने से जो महक थी फ़िज़ा में, उसके अलग अफ़साने थे!!

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